Sunday, September 11, 2011

author unknown

हूं इतना वीर की पापड़ भी तोड़ सकता हूं
जो गुस्सा आये तो कागज मरोड़ सकता हूं

अपनी टांगो से जो जोर लगाया मैंने
बस एक लात में पिल्ले को रुलाया मैंने

मेरी हिम्मत का नमूना कि जब भी चाहता हूं
रुस्तम ऐ हिंद को सपने में पीट आता हूं

एक बार गधे ने जो मुझको उकसाया
उसके हिस्से की घास छीनकर मैं खा आया

अपनी ताकत के झंडे यूं मैंने गाड़े हैं
मरे चूहों के सर के बाल भी उखाड़े हैं

जब अपनी जान हथेली पे मैं लेता हूं
हर आतंकी की निंदा मैं कर देता हूं

- भारतीय नेता

0 Comments:

Post a Comment

<< Home